कृष्णामूर्ति पद्धति

कृष्णामूर्ति पद्धति

कृष्णामूर्ति पद्धति आधुनिक युग में सबसे ज्यादा सठिक भविष्य कथन के लिए प्रयोग कि जाती है| कृष्णामूर्ति पद्धति में व्यक्ति अपने जीवन की घटित घटनाओं को आसानी से जाना जा सकता है क्योंकि यह विधि प्रत्येक प्रमाणों पर अवतरित की जा चुकी है| जीवन में विवाह, शिक्षा, दुर्घटनाएं तथा प्रोफेशन आदि विशेष के बारे में आसानी से जाना जा सकता है| कृष्णा मूर्ती पद्धति में तीन क्षेत्र प्रमुख हैं। पहला शासक ग्रह, दूसरा जन्म कुण्डली एवं तृतीय प्रश्न कुण्डली। शासक ग्रह इस पद्धति की सुनहरी चाबी है। राशि पथ 12 राशियों मे विभक्त है - प्रत्येक राशि 360/12 यानी 30 अंश की होती है। राशी पथ में 27 नक्षत्र भी हैं। प्रत्येक नक्षत्र 360/27 अंश यानी 13 अंश 20 कला का होता है।

ग्रहों के अपने स्वयं के प्राकृतिक गुण होते हैं। किन्तु नक्षत्र ग्रहों से बहुत बड़े होते हैं और अधिक चुम्बकीय तरंगें निकालते हैं। इसलिये ग्रहों की तुलना में नक्षत्रों को अधिक शक्तिशाली माना गया हैं। कृष्णामूर्ती का मानना है कि ग्रह जिस नक्षत्र में होता हैं उसका गुण ले लेता है और नक्षत्र द्वारा सूचित विषयों का सर्वाधिक फल देता है। महर्षि पाराशर की विंशोत्तरी दशा के सिद्धान्त के आधार पर समस्त नक्षत्रों को नौ भागों में बांट दिया है। 120 वर्ष की विशात्तरी दशा में जो वर्ष सूर्य, चन्द्र, मंगल आदि को दिये हैं उसी अनुपात में प्रत्येक नक्षत्र को अ समान 9 उप भागों में विभाजित किया है। प्रत्येक विभाजन को नक्षत्र नवांश, उपाधिपति या सब लार्ड कहते हें।

उदाहरणार्थ केतू के नक्षत्रों ( अश्विनी, मघा, मूल ) में उपभाग केतू से प्रारम्भ होकर बुध के उप भाग पर समाप्त होता है। मंगल के नक्षत्रों ( मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा ) में उप भाग मंगल से प्रारम्भ होकर चन्द्र के उप भाग पर समाप्त होता है। उप भाग का तात्पर्य है नक्षत्र का 1/9 विभाजन या भाग परन्तु सूर्य और गुरू के नक्षत्रों का 10 उप भामों में विभक्त किया है, जो कि 6 अतिरिक्त उपभाग देते हैं। इसलिये 27 नक्षत्र गुणा 9 उपभाग बराबर 243 उपभाग| सुर्य एवं गुस् के नक्षत्रों के 6 अतिरिक्त उपभाग। कुल 249 उपभाग। प्रत्येक ग्रह कुण्डली में अपनी स्थिति के बल पर उन भावों का फल देता है जिनके कि वह सूचक हैं। यह यह सूचक ग्रह - भावाधिपति, उसके ऩक्ष्त्र में स्थित ग्रह, भावों में स्थित ग्रह और स्थित ग्रहों के नक्षत्रों में स्थित ग्रह। ये बल में बढ़ते क्रम हैं। लग्न, द्वितीय, तृतीय, षष्टम, दशम और एकादश भावों को उन्नति कारक माना गया है। इनके द्वाारा जातक को अच्छे परिणामों की प्राप्ति होती है। चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम और द्वादश भावों को अवनति कारक माना गया है।

कृष्णामूर्ती पद्धति में ग्रहों की नैसर्गिक शुभता या अशुभता पर विचार नहीं किया जाता है। यदि कोई ग्रह उन्नति कारक भावों को सूचित करता है तो वह शुभ फल देगा और यदि अवनति कारक भावों को सूचित करता है तो वह अशुभ फल प्रदार करेगा। सभी फल दशा, अन्तर और प्रत्यन्तर की संयुक्त अवधि में अनुभव होंगे। कृष्णामूर्ती का मूलभूत विचार है कि नक्षत्राधिपति द्वारा प्रदत्त फलों को उपाधिपति परिवर्तित कर देता है। उपाधिपति ही जातक को प्राप्त होने वाले परिणामों को निर्धारित करता है। नक्षत्राधिपति श्रोत बताता है मगर उपाधिपति जातक को प्राप्त होने वाले परिणामों का अन्तिम निर्णय करता है। इसका विश्लेषण दो प्रकार से किया जा सकता है। एक - दशानाथ शुभ परिणाम देगा या नहीं, जैसे - किसी जातक को गुरू की दशा चल रही है जो 5, 6, 9, 10, 11 भाव का सूचक है। गुरू राहू के उपभाग में है जो 1, 2, 5, 7, 10 भाव का सूचक है तो भी उपाधिपति मुख्य‘ उन्नति कारक भावों से संम्बन्धित है इसलिये गुरू दशा पूर्णतया शुभ फल देगी।

यदि उपाधिपति 8, 12 को सूचित करता है तो हालांकि गुरू उन्नति कारक भावों को सूचित करता है तो भी दशा शुभ फल प्रदान नहीं करेगी। सम्बन्धित भाव का उपाधिपति जो सिर्फ प्रश्न से सम्बन्धित है उस पर विचार किया जाता है न कि नक्षत्राधिपति को लेकर, जैसे विवाह के प्रश्नों में केवल सप्तम भाव के उपाधिपति को लेकर विचार किया जायगा, नखत्राधिपति को लेकर नहीं। जब कोई ग्रह गोचर में किसी नक्षत्र पर से गुजरता है तो उस नक्षत्र के स्वामी के द्वाारा सूचित विषयों के परिणाम प्राप्त होंगे। यहां तक कि ग्रह सूचकों से संबन्धित न हो फिर भी सूचकों के नक्षत्रों पर गोचर करते हुए विषयों को फलित कर देता है।

यदि कोई ग्रह विवाह कारक भावों 2, 7, 11 से सम्बन्धित नहीं है, सूर्य के नक्षत्रों पर गोचर करते हुए सूर्य दशा के दौरान विवाह करा देगा। मुख्य रूप से वह गोचरस्थ नक्षत्र का ही फल देगा। इसलिये वर्तमान दशानाथ के गोचर को सावधानी पूर्वक देखते हुए ही भविष्य वाणी करना उचित है। वह किसी भी भाव को सूचित करता हो, मगर गोचर के दैारान मुख्य रूप से वह गोचरस्थ नक्षत्र का ही फल देगा।